कौन चीज़ चाहिए - तुम्हे कौन बताये, कौन समझाए, कौन दिखाए, कौन सुनाए?
तुम न पियो पानी तो भी हो जायो तृप्त की हर एक बून्द लगे है भारी ..
हम पिये पानी तब भी न छलके है तन से पसीना एक भी बारी |
जिस ओर हमने कदम बढ़ाया न जाती वह चिकित्शालय न पहुंचे है मधुशाला ..
मेरे आंगन में बोया बीज़, दी धुप, खाद्य और पानी जैसे मोतियों से सजाई किसी ने वनमाला |
अगर प्यार दिखता नहीं तो कैसे पहुँचती है ममता की आवाज़ ..
दूध, मलाई, मख्खन पनीर आते है सब एक ही धारा |
चलो चलो बहुत समझा लिया तुमने अब बातो की नहीं, कर्मो की है सज़ा-वफ़ा ..
क्यों ख़टास को तुम दुःखद समझते हो..
खट्टे के बाद मीठे से आता है और भी मज़ा |
अपना - पराया क्या ? ..
सब है अपने और किसी पल में पराये ..
यह सब बंधे है मोह के धागे से,
जो मन जीते वह अपने और जो न वह पराये |
ऐसे ही प्यार बढ़ता है जैसे धाराएं बनती है नदी और सागर बनता है नदियों से ,
जब दो-एक मिले है बने है दूजे, और परिवार बने है एक दूजे से |
रूपये पैसे से न, न सोने-चांदी-पित्तल लाती है खुशिया ..
आती तो है सच्चे श्रम, उसके फल और स्वाद की अनुभूति से खुशिया |
रिश्तों पर जो उधार करे है.. जीवन में मालामाल एक बार नहीं हर बार हुए है |
न इसमें डूबने का जोखिम, न महंगाई की मार,
और वक्त के साथ लाभ और उन्नति, रिश्तो को और भी मजबूत किये है |
दर्द तेरे बाट सकू ऐसा मै हर चीज़ करू ..
न हकीम, न पेरासिटामोल ..
बस मन का बोझ हल्का कर सकू ऐसा प्यार करू ..
उछलते तेल की छीट के जले पर जैसे बर्नोल मल सकू |
जैसे इडली को सांबर,
वैसे पति को पत्नी का प्यार, श्रृंगार .. और पत्नी को पति का साथ पूरा करता है |
धीमे - धीमे जैसे गर्मी बढ़ती है कम्बल के अंदर,
वैसे ही पत्नी-पति का प्यार-विश्वास-साथ .. एक छत के नीचे चढ़ता रहता है।
पुच्ची हमारी है फुलझरिया, मनाना जिसे उतना नहीं भारी ,
पर गलती हो जाए हमारी तो बरसे है ऐसे जैसे चिंगारिया |
पर शायद ऐसे ही प्यार बढ़ता है,
एक दूजे संग नौका पार होता है |
प्रार्थना हो तो बस ऐ मालिक, न लगने देना इस बार नज़र ..
वक्त है तेजी से निकल रहा पर, लेलो चाहे तो दो-दिन और चार मगर |
जब भी आना लाना संग वह धागा,
और बांध देना दो-तीन-चार हज़ार बार ..
न टूटे यह रिश्ता, न छूटे साथ एक भी बार,
न इस बार , न अगली बार , न आने वाले जन्म बार बार।
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