उपनिषद् का सारांश



प्रस्तुत है कुछ सारांश उपनिषद् गंगा के |


सार्वभौमिक कल्याण: कहा गया है, 'जितनी पुरानी है हिमालय पर्वत, जितनी पुरानी है गंगा, उतनी पुरानी है यह सच | हिंसा से कभी भी किसी ने किसी को नहीं जीता |'

वेद अर्थात ज्ञान का सागर: वेद का सब्दार्थिक अर्थ है ज्ञान ।। ऐसा माना जाता है इस ज्ञान को आकाशवाणी के द्वारा सुना गया | इसलिए इन्हे श्रुति भी कहा जाता है | ऋषियों ने जो ज्ञान देखा और सुना उसे वेद के रूप में लिखा |

वेद चार श्रेणी में है | इन्ही वेदो के मूल ज्ञान में हमारी संस्कृति छिपी है | आत्मा का विज्ञान इस देश को बचाते लाया है आज तक | किन्तु दुःख कि बात है कि आज समाज इन्ही वेदो को पिछलते जा रहा है | आज कुछ ही लोग इन पर रूचि देते है | जरुरी यह भी है कि हम शास्त्र को शस्त्र न बनाये |




क्या मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है ?

इसका उत्तर है "हाँ भी और ना भी" | अगर लोगो को मृत्यु के पश्चात मोक्ष मिलता है यह पता चल जाता तो वे मृत्यु को पहले गले न लगा लेते | मिलने को तो वो (ईश्वर) भी बेक़रार है पर हमें अपना कर्म करना है | हर किसी को किसी खास कार्य से इस धरती पर भेजा गया है । जब तक हम उस कर्म को पूरा नहीं करते हम कर्मबंधित है और तब तक हमे इस लोक में जन्म लेते रहना पड़ेगा |



क्या गृहस्थ जीवन मनुष्य के लिए जरुरी है ? 

विवाह विधाता कि आज्ञा है और विवाह इसलिए भी करते है ताकि पुत्र पुत्री हो और आप एक और रूप में अमर हो सके |


धर्मं क्या है ? 
अयोध्या का राजा और आचार्य विशिष्ट का छात्र था राजा हरिश्चन्द्र | "वचन जो मनुष्य मनुष्य को देता है", उसे पूरा करने के लिए राजा हरिश्चन्द्र ने अपनी बीवी तथा पुत्र को बेच दिया | और अपने आप को भी डोम को बेच दिया | यहाँ पर वचन उनका धर्मं था । और धर्मं पे वे अडिग रहे |

जब राजकुमार चन्द्रगुप्त अपने आराम के बारे में सोच रहे थे जबकी दूसरी तरफ राज्य में कुछ मनुष्य अभी भी सामान्य सुख को तरस रहे थे तब । उनके गुरु चाणक्य ने कहा 'सबको सुखी कर फिर अपने सुख के बारे में सोचना' । कौतिल्य के अनुशार प्रजा का सुख राजा का धर्मं है |

'यहाँ मैं इस बात को स्पष्ट कर देना चाहता हु कि धर्म का मतलब हिन्दू होने से नहीं है'।
अधर्म से अर्जित अर्थ अनर्थ है | धर्मं अर्जित करो वह पुरुषार्थ है लेकिन अधर्म से नहीं । बिना मूल्य दिए दुसरे से मदद लेना अपहरण है । मूल्य देके सेवा लो वही धर्मं है | राष्ट्र के प्रति प्रेम यानि राष्ट्रधर्म को सबसे बड़ा धर्मं कहा गया है |


मोक्ष क्या है ?
मोक्ष परम मानव पुरुषार्थ है । सुख मत मांगो, सुख के स्वामी बनो | मोह का त्याग, अहंकार का त्याग, यही तोह है मोक्ष |  सोना, चाँदी, साम्राज्य देना आसान है इसे कोई भी दे सकता है । दे सकते हो तोह अहंकार दो |
"उस शरीर का एक भवन था,
अब सारा संसार है |
तब मैं दान देता है ,
आज भिक्षा लेता हु |
तब मैं दुसरे से भिन्न मानता था ,
आज मैं खुद को सबमे पाता हुँ" |


क्या मनुष्य जन्म से ब्राह्मण होता है ? 
वेदो के अनुसार जन्म से कोई ब्राह्मण या सूद्र नहीं होता | मैं इसे इस प्रकार कहना चाहूँगा : जन्म से हर मनुष्य सूद्र, संस्कार से मनुष्य द्विज, वेदो के अध्यन से विप्र, और जो ब्र्ह्म को जान लेता वोह ब्राह्मण हो जाता है । बाकी कोई मनुष्य ब्राह्मण नहीं बल्कि मृत्यु शोक के ज्ञाशी है  | हर व्यक्ति अशीम संभावनाओ का स्वामी है | और उन् संभावनाओ के द्वार खोलना ही वर्ण व्यवस्था का उद्धेश्य  होना चाहिए | भगवान बुद्ध ने कहा है "मनुष्य कर्म से ब्राह्मण या क्षत्रिय या वैस्य या सूद्र होता है "|


ज्ञान कैसे पाए ? 
प्रश्न करो , प्रश्न करो , प्रश्न करो, उसी में उत्तर है |
ज्ञान वोह चीज़ है जिसे आपस में बाटना बहुत जरुरी है | तभी हम एक उत्तम और नविन भारत का निर्माण कर पाएंगे |

स्वामी विवेकानंदा ने कहा है "साहस करो, हमेशा पूरा सच बोलो", "सच को बिना मरोड़े उसी रूप में बोलो जैसा कि वोह है" | इसके लिए निडर बनो | हमने देखा ही है कि कैसे कुछ मुठी भर शक्तिशाली लोग पूरे विश्व को हिला देते हैइसलिए सबको साहसी बनना चाहिए | हम सब के अंदर ईश्वर है जरुरत है तोह हमे उसे पहचानने कि यह सिर्फ सचाई से हो सकता है